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॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥
The Navratri Puja, As an illustration, consists of putting together a sacred Place and accomplishing rituals that honor the divine feminine, which has a target meticulousness and devotion that is certainly believed to convey blessings and prosperity.
आस्थायास्त्र-वरोल्लसत्-कर-पयोजाताभिरध्यासितम् ।
यहां पढ़ें त्रिपुरसुन्दरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari ashtottarshatnam
देवीं मन्त्रमयीं नौमि मातृकापीठरूपिणीम् ॥१॥
लक्ष्मीशादि-पदैर्युतेन महता मञ्चेन संशोभितं
ईक्षित्री सृष्टिकाले त्रिभुवनमथ या तत्क्षणेऽनुप्रविश्य
लक्षं जस्वापि यस्या मनुवरमणिमासिद्धिमन्तो महान्तः
या देवी हंसरूपा भवभयहरणं साधकानां विधत्ते
॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥
करोड़ों सूर्य ग्रहण तुल्य फलदायक अर्धोदय योग क्या है ?
यामेवानेकरूपां प्रतिदिनमवनौ संश्रयन्ते विधिज्ञाः
इसके अलावा त्रिपुरसुंदरी देवी अपने नाना रूपों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में पूजी जाती हैं। वाराणसी में राज-राजेश्वरी मंदिर विद्यमान हैं, जहाँ देवी राज राजेश्वरी(तीनों लोकों की रानी) के रूप में पूजी जाती हैं। कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरूप में देवी का विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में हैं। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिया नामक स्थान में देवी हंशेश्वरी website षोडशी (षोडशी महाविद्या) नाम से पूजित हैं।
प्रासाद उत्सर्ग विधि – प्राण प्रतिष्ठा विधि